परिवर्तिनी एकादशी 2024: जानिए असली कथा, बिना कथा के अधूरा है व्रत!

News

परिवर्तिनी एकादशी हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और चातुर्मास की पाँचवीं एकादशी है। यह एकमात्र एकादशी है जो गणेश चतुर्थी उत्सव के दौरान आती है, इसलिए इस दिन का व्रत विशेष रूप से पुण्यदायी माना जाता है। इस वर्ष यह व्रत 14 सितंबर को रखा जा रहा है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए। यदि व्रत कथा नहीं सुनी जाती, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा, जो व्यक्ति व्रत नहीं करते, उन्हें भी इस कथा को सुनने से आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इस एकादशी की वास्तविक कथा।

श्रीकृष्ण द्वारा सुनाई गई कथा

पुराणों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। पांडवों ने भी इस व्रत का पालन किया था, जिससे उन्हें राज्य और इंद्र के समान ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई। इस व्रत की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और अन्य पांडवों को सुनाई थी। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या महत्व है और इस दिन का क्या नाम है। इसके उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि यह पुण्यदायी व्रत मोक्ष की प्राप्ति करवाता है और सभी पापों का नाश करता है। इसे वामन एकादशी, पद्मा एकादशी और जयंती एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

व्रत की विधि और महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि इस एकादशी का पालन करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। जो लोग इस दिन भगवान विष्णु की वामन रूप में पूजा करते हैं, उन्हें तीनों लोकों में सम्मान प्राप्त होता है। इसलिए मोक्ष की इच्छा रखने वाले सभी को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। यह व्रत उन सभी पापों का नाश करता है जो जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते हैं।

भगवान के वचन

भगवान श्रीकृष्ण के वचन सुनकर युधिष्ठिर ने प्रश्न किया कि भगवान किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि भगवान वामन रूप धारण कर बलि को कैसे हराया और चातुर्मास का क्या महत्व है। इसके उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने त्रेतायुग के दैत्य बलि की कथा सुनाई। बलि भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन उसने इंद्र को हराकर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था।

बलि की कथा

सभी देवताओं ने बलि से छुटकारा पाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि ने इसे तुच्छ मांग समझकर भूमि देने का संकल्प किया। तब भगवान ने अपने वामन रूप को त्रिविक्रम रूप में बदल लिया और एक पग से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा, तो बलि ने अपना सिर झुका दिया, और भगवान ने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया। इस प्रकार बलि पाताल लोक चला गया, लेकिन भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि वे हमेशा उसके निकट रहेंगे।

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व

इस कथा के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत करने और रात्रि जागरण करने से समस्त पापों का नाश होता है और व्रती को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो लोग इस कथा को सुनते हैं, उन्हें हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।